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 (टीआरपी) घोटाला उजागर करने के वाद फिर से टीआरपी एक वार चर्चा में है। बैसे, टीआरपी में रिपव्लिक भारत के नम्बर वन बनने के वाद से ही टीआरपी चर्चा में थी क्योंकि इसके पहले आज तक टीवी चैनल लंबे समय से टीआरपी में नम्बर वन था। टीआरपी द्वारा कोई टीबी चैनल या उसका शो कितना लोकप्रिय है, इस वात का पता चलता है। पहले इसे मापने का काम टैम या (टीएएम) करती थी। अब यह काम वार्क इंडिया (वीएआरसी) या 'ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल इंडिया' करती है। 



'टीआरपी टेलीविजन चैनलों की लोकप्रियता आंकने का फिलकक्त एकमात्र तरीका है। इसे दर्शक या पीपुल्स मीटर के नाम से भी जाना जाता है। इसकी मदद से टेलीविजन चैनलों की लोकप्रियता को प्रतिशत में एक निश्चित अवधि, जो सामान्यतः एक सप्ताह होती है. के लिए दशीया जाता है। दर्शक मीटर को टेलीविजन सेटें में लगाया जाता है, जिसकी सहायता से दशक कौनसा कार्यक्रम देख रहे हैं, का पता चलता है। देश की अलगअलग जाहों में 30,000 दर्शक मीटर लगे हुए हैं, जिनमें से 0,000 अकेले मुंबई में हैं।

 लोकप्रियता का पैमाना होने के कारण 'टीआरपी को टेलीविजन चैनलों के लिए अति महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि लोकप्रियता का सीधा संबंध विज्ञापन से होता है। किसी भी टीबी चैनल को ठीआरपी के अनुपात में विज्ञापन मिलता है। चूंकि चैनलों की आय का मुख्य स्त्रोत विज्ञापन होते हैं। इस लिहाज से टीआरपी की महत्ता स्वय॑सिद्ध है। दर्शकों को आकर्षित करने के लिए टेलीविजन चैनलों में उलजुलूल या अतार्किक कार्यक्रम दिखाने के लिए होड़ मची है। उदाहरण के तौर पर रिपव्लिक भारत टीवी में आजकल फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु को आत्महत्या की जगह हत्या बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इसी वजह से रिपक्लिक भारत टीआएपी में नम्बर वन वन गया। आज सभी खबरिया टीवी चैनल 'कमोवेश इस होड़ में शामिल हैं। 

हाथरस की घटना को भी 'टीआयपी बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। अब टीवी चैनल अदालत और पुलिस, दोनों वन गए हैं। सरोकारी पत्रकारिता से किसी भी खबरिया चैनल का कोई सरोकार नहीं रह गया है। खबरिया चैनलों के वीच अपराध से जुड़ी खबरों को नाटकीय तरीके से दर्शकों के समक्ष परोसने की भी होड़ मची है। एवीपी न्यूज पर 'सनसनी', आज तक पर 'बारदात' आदि इसी श्रेणी के अपराध पर आधारित समाचार में वर्गीकृत कार्यक्रम हैं। चैन से सोना है तो जाग जाओ' एक खवरिया चैनल द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले अपराध पर आधारित समाचार से संबंधित कार्यक्रम की लोकप्रिय पंचलाइन रही है। सावधान इंडिया, क्राइम पेट्रोल आदि मसालेदार कार्यक्रमों को भी खबरिया चैनल दिखा रहे हैं। कुछ साल पहले एक खबरिया चैनल द्वार कालकपालमहाकाल नाम का डराबना और अंधविश्वास पर आधारित कार्यक्रम दिखाया जा रहा था। 

भले ही टीआरपी विज्ञापन पाने का प्रमुख स्त्रोत है, लेकिन इसकी विश्वसनीयता आगाज से ही संदिग्ध रही है। गलत टीआरपी के कारण अपात्र चैनल/कार्यक्रम को पुरस्कार एवं विज्ञापन से नवाजा जा रहा है। टीआरपी मापने वाली वार्क इंडिया या टैम द्वारा अपनाए गए या अपनाए जा रहे मानक सबालों के घेरे में हैं। विकासशील देश होने के बावजूद देश की एक बड़ी आवादी के पास टेलीविजन और मोबाइल फोन हैं। दूरः दराज के इलाकों में इनवर्टर या बैट्री की मदद से टेलीविजन देखे जा रहे हैं। ग्रामीण, कार्यक्रम या चैनल की लोकप्रियता का निर्धारण करे में सक्षम हैं, लेकिन कसर झझकर टीआरपी को मापने में उनकी अनदेखी की जाती हैं। टीआरपी के निधीरण में निणीयक भूमिका निभाने वाले कॉरपेरेट्स ने बहुत से शहरों को जानवूझकर इस प्रक्रिया से अलग कर दिया है, ताकि उनके चैनलों की टीआरपी कम नहीं हो।

 जाहिर है कि टीआरपी मापने वाले मानक आधे-अधुरे हैं, जिनसे टीआरपी का सही आकलन संभव नहीं है। वार्क इंडिया भी इस वस्तुस्थिति से वाकिफ है। वह जानती है कि दीआरपी का सही आंकड़ा जारी करने से उसकी खुद की दुकान वंद हो जाएगी। इस धंधे में विज्ञापन एजेंसियों की भी मिलीभगत है। जब तक इनके हित एक दूसरे से परस्पर जुड़े रहेंगे, तव तक टीआरपी के सही आंकड़े हमारे सामने नहीं आ पाएंगे। सच 'कह् जाए तो मुंबई पुलिस ने भी किसी घोटाले का पर्दफाश नहीं किया है। टीआरपी के मानक पहले से आधे-अधूरे हैं। इससे किसी टीवी चैनल या कार्यक्रम की लोकप्रियता का पता कतई नहीं लगाया जा सकता। 

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