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रामकिलास पासवान की राजनीति को सिर्फ दलित राजतत के दायो मे रखना न्यायसंगत नहीं होगा। उनका दावशा विशाल था। वे समाज के हर वर्ग और आति के गरीब को राजबैती की आवाज कलना चाह ये। रामबिलास पासबान ने 'सपाजवाद की जो ठसवीर रखे, उसका मूल स्वर भी कहीं है और मूल चेतना भी।

'रामक्लास पासवान के संपूर्ण राजनैतिक जी का मूल्यांकन कह यह कम जा सकता है कि उन्होने दलित राजनीति की गंभीरता को समझा: उसकी पहुंचकिसी समाधान वध शक्ल मे हो, इसके लिए वे मुकम्पल स्थिति काने मैं लगे रहे। अपनी राजनीति की चौखट में रामक्लास पासवान हमेशा फिट रहे। उसकी बजह वह थी कि वे दलित राजनीति की तमाम जस्पतें से लैस रहे और समाज के बदलते स्वरूप के प्रति सजग भी।

 दलित राजनीति उनके लिए किसे अस्ब की काह रही रहे, बालक जीवन के साथ चलने वाली उन घातओं की तरह वो, जहां एक सहन सुदरर और सफल जैवन वहत सुगमता के साथ समाजमें घर करता दिखा। पासवान उस स्थिति को प्राप्त करना चाहते थे कि जिससे दलित राजनीति की महजस्वीकार्यता कम सके और राज्जीतिक लव मे उसकी जह्यत भी ऐसी हो कि कर किसी भी पर्ट को ज़िम्मेदरी की जद से वाहर भी ने दे। 

यही कजह भी है कि उन्होंने दलित राजनीति को आक्रामक स्वर नहीं दिया, वल्कि राजनीतिक प्लेटफॉर्म पर सहन स्वोकार्वता काने को पृष्ठभूमि तैया की, जहां 'उस स्थिति को पे मं कामयाव रही कि वे एक जरूरत के साथ विफिन विचरों बाली सरकार में शामिल होकर दलित कह लें या कि रामबिलास पासवान जी की भाषा में गरीबों के राजनीति को जीबित रखते अपनी स्वोकार्यतरा बनाये रखो। 

शायद वही वजह भी रही कि अपनी एक अलग किस्म की राजनीति की स्वीकार्य के साथ उन्होंने सहजता से देश के छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम थी किया और उन्हें जब और जहां भी ऐसा लगा कि यह राजनीति उनको सोच के विपरीत है, तो उन्होंने कौर कोई हिवरत पैदा किये सतत सुख से अपना किमार भी कर लिय। वर्तपान राजनीतिक हालात की बात करें, तो आज सभी दलों में दलित राजनीति की स्वीकार्यत्र की और उसका स्वां्र औसत स्थापित हुआ तो इसका ब्रेव 'रामविलास पासचान को दलित राजनीति को मिलना चहिए। वर्ष 2000 के छनावी संग्राम में दलित राजनीति का वह चेहरा सामने आया, जहां हर दल ने फ़ंट वारिवर्स के रूप में अफोअपने दलित नेत को आगे कर रखा है। 

सहजता और सरलता 'रामबिलास पासवान की राजनीति को हो नहीं, वल्कि जीवन का भी मूल मंत्र वा 'बई व केंद्रीव मंत्री रह चुके रामक्लास पसबान में वह ऐंठन नहीं थे, जे उन्हें मानव से लग जीवन से अलगकर सके। उतने अलीत की जिद को कमान के बोझ से कभी दकने नहीं दिया। कई ऐसे किस्से भी हैं, जो बड़े प्यार से उनके खाथ काम करने वाले या पाई के नें मे साथ रहो वाले को जुबां पर मचलते रहे हैं। 

अप इ्र्द रहे नेता हो या का, उनके जीवन के सुख़दुख का ख्याल भी रखते वे। खाने पर वैठका और राजनीति के अनछुए बा उनका शगल धी था। रिश्ते का ख्याल रखने में वे नामवर थे। जीवन शैली उनकी ऐसी रहे कि वे किसी के लिए असाध्य भी री रहे। धाषणा को वे समय के साथ बदलते नहीं थे। सच्चे वात्वाज भी ले थे रामकिलास पासवान। सो... समय के साथ जब कपी भी मन का कोई गरोख खुलेग।
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